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आज से शुरू मलमास, जानिए इसका महत्व व जरूरी बातें

सूर्य करेंगे मीन राशि में प्रवेश

हिंदू धर्म में सभी शुभ कार्य ग्रहों की चाल और उनकी स्थिति को देखकर किए जाते हैं। ताकि उनका शुभ फल मिले और वह कार्य बिना किसी विघ्न के समय से पूरे हो सकें। हालांकि मलमास जो लगभग एक माह तक रहता है उस दौरान मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार, आज जैसे ही सूर्य देव मीन राशि में प्रवेश करेंगे खरमास या मलमास की शुरुआत हो जाएगी। इस दौरान सूर्य़ अगले एक महीने तक मीन राशि में भ्रमण करेंगे। इसके बाद उनके मेष राशि में प्रवेश करने के बाद से विवाह आदि मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाएंगे। मान्यता है कि हर तीन साल पर एक बार अतिरिक्त मास आता है। इसे मलमास या अधिमास या पुरूषोत्तम मास के नाम से भी जानते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दौरान किए पूजा-पाठ का अन्य माह की अपेक्षा अधिक पुण्य प्राप्त होता है। 

शुभ कार्यों की इसलिए होती मनाही 

हमारे शास्त्रों में इस माह को अतिरिक्त होने के कारण मलिन मानते हैं। इस कारण से इस दौरान सभी शुभ कार्य जैसे नामकरण, यज्ञोपवीत, विवाह और अन्य सामान्य संस्कार जैसे गृह प्रवेश, नए बहुमूल्य वस्तुओं की खरीदारी आदि आमतौर पर करने से बचा जाता है। मलिन मानने के कारण ही इसका नाम मलमास पड़ा है।

ऐसे होती मलमास की गणना 

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार, मलमास चंद्र वर्ष का एक अतिरिक्त भाग है, जो हर 32 माह, 16 दिन और 8 घड़ी के अंतर से आता है। मलमास से सूर्य वर्ष और चंद्र वर्ष के बीच संतुलन बनाया जाता है। पंचांग के अनुसार, इस बार दो ज्येष्ठ माह पड़ रहे हैं। दरअसल सूर्य वर्ष 365 दिन और करीब 6 घंटे का होता है। वहीं चंद्र वर्ष 354 दिनों का माना गया है। ऐसे में दोनों वर्षों के बीच लगभग 11 दिनों का अंतर होता है, जो हर तीन वर्ष में लगभग 1 मास के बराबर हो जाता है। इसी अंतर को पाटने के लिए हर तीन साल में एक चंद्र मास प्रकट होता है, जिसे अतिरिक्त होने के कारण मलमास मानते हैं। मान्यताओं के अनुसार, हर चंद्र मास के लिए एक देवता निर्धारित हैं। मगर मलमास का स्वामी बनने के लिए कोई देवता तैयार नहीं हुए। ऐसे में सभी ऋषि व देवतागणों की प्रार्थना के कारण भगवान विष्णु इस मास के अधिपति बने। इस कारण से इसे पुरूषोत्तम मास भी कहते हैं। दरअसल पुरूषोत्तम भगवान विष्णु का ही एक नाम है।

क्या है पौराणिक कथा 

मलमास का वर्णन हमारे पुराणों में भी मिलता है। जिसकी एक कथा दैत्यराज हिरण्यकश्यप के वध से जुड़ी है। इस पौराणिक कथा के अनुसार, दैत्यराज हिरण्यकश्यप ने एक बार ब्रह्माजी को अपने कठोर तप से प्रसन्न कर लिया और उनसे अमरता का वरदान मांगने की इच्छा प्रकट की। मगर अमरता का वरदान देना निषिद्ध है, इसीलिए ब्रह्माजी ने उससे अन्य वर मांगने के लिए कह दिया। इस पर हिरण्यकश्यप ने कहा कि उसे ऐसा वरदान मिले की संसार का कोई नर, नारी, पशु, देवता या असुर उसे मार न सके। साल के बारह महीनों उसे मृत्यु न प्राप्त हो और जब वह मरे, तो न दिन का समय हो, न रात। किसी अस्त्र से मरे, न किसी शस्त्र से। ऐसा वरदान मिलने के बाद हिरण्यकश्यप स्वयं को अमर मानकर, खुद को भगवान घोषित कर सभी पर अत्याचार करना लगा। मगर समय आने पर भगवान विष्णु, मलमास में अपने नरसिंह अवतार यानी अर्द्धपुरूष व सिंह रूप में प्रकट हुए। उन्होंने शाम के समय, देहरी के नीचे अपने नाखूनों से हिरण्यकश्यप का सीना चिरते हुए उसे मृत्यु के द्वार भेज दिया।

मलमास में क्या करें 

शास्त्रों के अनुसार, मलमास के दौरान श्रद्धालु व्रत- उपवास, पूजा-पाठ और कीर्तन-मनन करते हैं। ऐसे इस मास के दौरान यज्ञ-हवन के अलावा, श्रीमद्भागवत, श्री विष्णु पुराण आदि पढ़ने-सुनने से लाभ होता है। जैसा कि मलमास के अधिपति भगवान विष्णु हैं, इस कारण पूरे समय विष्णु मंत्रों का जप करना खास लाभकारी माना गया है। ऐसी मान्यता है कि जो श्रद्धालु सच्चे मन से मलमास में भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना व उनका मंत्र जप करता है, उसे भगवान विष्णु स्वयं आशीर्वाद देते हैं। उसके पापों का नाश होता है और सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

 
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