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केदारनाथ आपदा के पांच सालः बाबा के धाम पर सियासत के दांवपेच

जून 2013 की केदारघाटी की प्राकृतिक आपदा यूं तो इतिहास की भयावह दुर्घटनाओं में शुमार है, लेकिन विडंबना यह है कि हजारों जिंदगी लीलने वाले इस हादसे पर पिछले पांच सालों से जारी सियासत अब भी नहीं थम पाई है। गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को उत्तराखंड की उस वक्त की कांग्रेस सरकार ने आपदा प्रभावित केदारघाटी में जाने की अनुमति नहीं दी, लेकिन किस्मत का फेर देखिए, वही नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद संभालने के बाद आपदा से तबाह केदारधाम के पुनर्निर्माण को अपने ड्रीम प्रोजेक्ट के रूप में पूरा कर रहे हैं। 

यह बात दीगर है कि कांग्रेस ने विपक्ष में आने के बाद भी इस मुद्दे पर भाजपा की केंद्र और राज्य सरकारों को निशाने पर लेने से गुरेज नहीं किया।

16/17 जून, 2013 की प्राकृतिक आपदा उस वक्त प्रदेश में सत्तारूढ़ कांग्रेस पर खासी भारी पड़ी। हालांकि गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के जवाब में कांग्रेस अपने शीर्ष नेताओं में से एक राहुल गांधी को पूरी सहूलियत देकर केदारनाथ दौरे पर लाई, लेकिन इसके बावजूद प्रदेश में सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार के मुखिया विजय बहुगुणा को आपदा के महज सात महीने बाद ही कुर्सी गंवानी पड़ी। 

कारण, उन पर आपदा से निबटने में असफल रहने का आरोप लगा। बहुगुणा के उत्तराधिकारी के रूप में कांग्रेस आलाकमान ने तत्कालीन केंद्रीय मंत्री हरीश रावत को उत्तराखंड का जिम्मा सौंपा। इसका नतीजा यह रहा कि कांग्रेस के दिग्गज सतपाल महाराज ने पार्टी का दामन छोड़ दिया। दरअसल, रावत की ताजपोशी कांग्रेसी दिग्गजों को रास नहीं आई।

यह सिलसिला जारी रहा और मार्च 2016 में पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा, कैबिनेट मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत समेत नौ कांग्रेस विधायक पार्टी को दोफाड़ कर भाजपा में शामिल हो गए। चंद दिनों बाद ही एक अन्य विधायक सरिता आर्य ने पार्टी छोड़ी और वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव के वक्त दो बार के प्रदेश अध्यक्ष व कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य भी कांग्रेस को अलविदा कह गए।

कांग्रेस की बुरी स्थिति और प्रधानमंत्री मोदी की लहर में उत्तराखंड में भाजपा एकतरफा बहुमत से सत्ता में आई। हालांकि प्रदेश में कांग्रेस सरकार के दौरान ही केदारनाथ धाम के पुनर्निर्माण का कार्य आरंभ हो गया था लेकिन इसने असल तेजी पकड़ी सूबे में भाजपा के सत्तासीन होने के बाद। 

प्रधानमंत्री के डबल इंजन, यानी केंद्र व प्रदेश में एक ही पार्टी की सरकार, के स्लोगन को धरातल पर उतारते हुए केदारनाथ पुनर्निर्माण को त्रिवेंद्र सरकार ने मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट के रूप में हाथ में लिया तो कांग्रेस ने श्रेय लेने की होड़ में इस मुद्दे का राजनीतिकरण करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। 

गत वर्ष अक्टूबर में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पुनर्निर्माण कार्यों के अवलोकन के लिए केदारनाथ आए तो कांग्रेस ने इसे भी भाजपा का राजनीतिक हथकंडा करार दिया। इस वर्ष केदारनाथ धाम के कपाट खुलने के मौके पर तो वरिष्ठ कांग्रेस नेता व पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने दूरबीन और खुर्दबीन लेकर निर्माण कार्यों की हकीकत जानने का ऐलान कर सियासी दांव खेल डाला, हालांकि मसला केवल सियासी आरोपों तक ही सिमट कर रह गया। 

इस सबसे इतर, उत्तराखंड के आम जनमानस को केदारनाथ आपदा और पुनर्निर्माण जैसे संवेदनशील मुद्दे पर पांच सालों से चल रही सियासत से कोई सरोकार नहीं। विकास के आधारभूत ढांचे की उपलब्धता उसके लिए इस सबसे ऊपर ज्यादा अहमियत रखता है।

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