धुर वामपंथी पार्टी भाकपा माले बदल रही है। कभी झामुमो अध्यक्ष शिबू सोरेन एवं राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव को भ्रष्ट बतानेवाली माले 2019 के लोकसभा चुनाव में दोनों नेताओं की पार्टियों से गठजोड़ करने की कोशिश कर रही है। झामुमो एवं राजद के रास्ते माले महागठबंधन में शामिल होने की तैयारी कर रही है। माले के राष्ट्रीय महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने रांची में झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन एवं पटना में राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव से मिलकर दोस्ती का हाथ बढ़ाया है। हालांकि, लालू से भेंट के बारे में उनका कहना है कि वे सिर्फ उनका तबीयत जानने मिले थे।
माले में यह बदलाव अचानक ही नहीं हुआ है। मोदी लहर में माले को अपना अस्तित्व खतरे में दिख रहा है। अपने दोनों प्रमुख क्षेत्र झारखंड एवं बिहार में माले सिकुड़ती जा रही है। पार्टी को यह समझ मे आ गया है कि जिस तरह पूरे देश में मोदी लहर है उसमें 2019 के लोकसभा एवं विधानसभा चुनाव में एकला चलो नीति पार्टी के लिए घातक साबित हो सकती है। अपने दिवंगत नेता महेंद्र सिंह के शहादत दिवस पर बगोदर की जनसभा में ही माले के राष्ट्रीय महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने संकेत दे दिया था कि मोदी को रोकने के लिए वे गठबंधन की राजनीति कर सकते हैं। एक समय था कि जब माले वामपंथी पार्टियां भाकपा, मासस एवं माकपा से रिश्ता नहीं रखती थी क्योंकि दोनों कांग्रेस, राजद एवं झामुमो से चुनावी तालमेल करती थी। माले के कारण व्यापक वाम एकता कायम नहीं हो पाती थी। आज उसी माले के सबसे बड़े नेता दीपंकर भट्टाचार्य खुद लालू यादव एवं हेमंत सोरेन से जाकर मिल रहे हैं।
पिछले दो दशक से एकला चलो नीति पर चलकर माले झारखंड एवं बिहार के कुछ खास हिस्सों में काफी मजबूत हुई है। लेकिन, 2014 चुनाव में नरेंद्र मोदी के करिश्माई नेतृत्व में पूरे देश में भाजपा के पक्ष में आंधी चली, उसमें माले की भी जमीन खिसक गई। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है माले का बगोदर विधानसभा सीट गंवाना। राजधनवार सीट जीतकर भी माले बगोदर की भरपाई नहीं कर सकी। महेंद्र सिंह की धरती बगोदर से माले की पहचान बन गयी थी। इस सीट पर भाजपा का कमल खिलना माले के लिए बहुत बड़ा झटका था। झारखंड की 14 लोकसभा सीटों में से एक सीट कोडरमा में माले की स्थिति मजबूत थी। 2014 के चुनाव में माले वहां भाजपा की निकटतम प्रतिद्वंद्वी बनकर उभरी थी। लेकिन इस सीट पर भाजपा को कड़ी टक्कर देने वाले माले विधायक राजकुमार यादव का राज्यसभा चुनाव में वोट रद होने से माले की भद पिट गई।
राजकुमार यादव पर भाजपा प्रत्याशी प्रदीप सोंथालिया को अप्रत्यक्ष समर्थन देने का आरोप लगा था। पार्टी ने इसके लिए उन्हें सभी कमेटियों से निलंबित करते हुए उनके खिलाफ जांच कमेटी बैठाई थी। जांच कमेटी ने तो विधायक राजकुमार को क्लीन चिट दे दी लेकिन इस आरोप के कारण कट्टर भाजपा विरोधी उनकी छवि को गहरा झटका लगा है। माले के लिए कोडरमा लोकसभा सीट बहुत ही खास है। इस सीट को जीतने की पार्टी को काफी उम्मीदे हैं। महागठबंधन से यहां झाविमो प्रमुख बाबूलाल मरांडी भी दावेदार हैं। इस कारण माले इस बार महागठबंधन में शामिल होकर यहां भाजपा को हराने की रणनीति पर काम कर रही है। दीपंकर भट्टाचार्य का हेमंत सोरेन से मिलना इसी रणनीति का एक हिस्सा है। मासस के निरसा विधायक अरूप चटर्जी की कोशिश है कि माले और झाविमो दोनों महागठबंधन में शामिल हो। बाबूलाल मरांडी के लिए वे मासस की धनबाद लोकसभा सीट छोड़ने की बात करते हैं।
सूत्रों के अनुसार बिहार में माले लालू यादव से दोस्ती कर सिवान एवं आरा लोकसभा सीट पर समर्थन चाहती है। राजद से वहां माले के विरोध का मूल कारण उसके बाहुबली नेता शहाबुद्दीन थे। जेएनयू के पूर्व अध्यक्ष चंद्रशेखर की हत्या को लेकर माले और राजद में वहां काफी विवाद था। लेकिन, शहाबुद्दीन को सजा होने के बाद से राजद वहां कमजोर हुआ है। इस सीट पर भाजपा को रोकने के लिए लालू माले को समर्थन देने पर विचार कर सकते हैं। इस संबंध में दीपंकर भट्टाचार्य का कहना है कि भाजपा आरएसएस के एजेंडे को लागू कर रही है। इससे देश एवं संविधान खतरे में है। भाजपा को रोकने के लिए माले दूसरी राजनीतिक पार्टियों से हाथ मिलाएगी।