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उत्तरकाशी में दस से अधिक गांवों की जीवन रेखा अस्थाई पुलिया के भरोसे चल रही है। आपदा के दौरान इन गांव के निकट के बरसाती नालों में बनी पुलिया बह गई थी, जो अभी तक स्थाई रूप से नहीं बनाई गई हैं। ग्रामीणों और छात्रों को जान जोखिम में डालकर बरसात के समय ये नदी-नाले पार करने पड़ रहे हैं। इन नालों पर कई बार हादसे भी हो चुके हैं, बावजूद इसके सोया हुआ तंत्र जागने को तैयार नहीं है। बता दें कि भटवाड़ी ब्लॉक के स्याबा और सालू गांव के 30 से अधिक नौनिहाल अपनी जान जोखिम में डाल कर एक बरसाती गदेरे पर लगी लकड़ी की कच्ची पुलिया को पार कर सौंरा इंटर कॉलेज आते-जाते हैं। नौगांव ब्लॉक के मदेश और पिंडकी के बीच हनुमान गंगा पर स्थाई पुलिया आपदा के दौरान बह गई थी। ग्रामीणों ने आवागमन के लिए अस्थाई पुलिया बनाई। मोरी ब्लॉक के सटूड़ी गांव के ग्रामीणों ने कुछ दिन पहले ही सुपीन नदी पर अस्थाई पुलिया बनाई। इस पुलिया से ग्रामीण व छात्र जखोल पहुंचते हैं। घोषणा के बाद भी पिछले पांच सालों से स्थाई पुल का निर्माण नहीं हो सका। मोरी के सांकरी से ओसला गंगाड़ जाने के लिए ग्रामीणों हलारा गदेरा व पूर्ती गाड को पार करना पड़ता है। लेकिन इन दोनों जगह पर 2012 में यहां बनी अस्थाई पुलिया बह गई थी। हलारा गदेरे में 2014 में एक महिला गदेरे के उफान में बह गई थी। 2016 में यहां एक ब्रह्म ब्रिज भी बनाया गया था। वह भी टूट गया गया है। अब हलारा गदेरा व पूर्ति गाड़ में ग्रामीणों ने अस्थाई पुलिया बनाई है। भटवाड़ी ब्लॉक के गजोली व नौगांव के छात्रों को भी इंटर कॉलेज तक पहुंचने के लिए 2012 से कच्ची पुलिया का सहारा लेना पड़ता है। उत्तराखंड: भारी बारिश से उफान पर आए ये दो नाले, लोगों में दहशत यह भी पढ़ें इस तरह से अगोड़ा गांव के ग्रामीण अपनी छानियां व खेतों तक जाने के लिए असी गंगा को पार करते हैं। 2017 में एक ट्रॉली लगाई गई। लेकिन ट्रॉली के तार ढीले हो चुके हैं। इसी घाटी में विश्व प्रसिद्ध पर्यटक स्थल डोडीताल जाने के लिए बेवरा नदी पार करनी होती हैं। यहां ग्रामीणों ने अस्थाई पुलिया बनाई है। लेकिन बरसात में यह पुलिया बह जाती है। बीते वर्ष पुलिया बहने से डोडीताल में पांच पर्यटक फंसे थे। वन विभाग ने इन मार्ग की मरम्मत पर दो करोड़ से अधिक खर्च कर दिए हैं। बावजूद इसके अभी तक पुलिया नहीं बन पाई है। मोरी के बेंचा घाटी के लिवाडी, फिताडी, रैक्चा के ग्रामीणों को बरसात में सुपीन नदी तथा मोरी के नुराणु, सेवा, बरी के ग्रामीणों को रूपीन नदी पर बनाई अस्थाई पुलिया से आवागमन करना पड़ रहा है। इसी तरह की स्थिति पुरोला के सांखाल, मटियालोड, थली, नाडा गांव की है। बरसात के दिन इन ग्रामीणों पर भारी पड़ते हैं। ट्रॉली से गिरकर उफनती टौंस नदी में समार्इ बच्ची, लापता यह भी पढ़ें जिलाधिकारी आशीष चौहान ने बताया कि गजोली में पुलिया बनाने के लिए जिपं को निर्देश दिए गए हैं। सटूड़ी गांव में स्थाई पुलिया स्वीकृत है। वन अधिनियम की स्वीकृति की कार्रवार्इ गतिमान है। ग्रामीणों के पास वैकल्पिक रास्ते भी हैं।

यहां बल्लियों पर टिकी है दस गांवों की जिंदगी, हो सकता है बड़ा हादसा

उत्तरकाशी में दस से अधिक गांवों की जीवन रेखा अस्थाई पुलिया के भरोसे चल रही है। आपदा के दौरान इन गांव के निकट के बरसाती नालों में बनी पुलिया बह गई थी, जो अभी तक स्थाई रूप से नहीं बनाई गई हैं। ग्रामीणों और छात्रों को जान जोखिम में डालकर बरसात के समय ये नदी-नाले पार करने पड़ रहे हैं। इन नालों पर कई बार हादसे भी हो चुके हैं, बावजूद इसके सोया हुआ तंत्र जागने को तैयार नहीं है। उत्तरकाशी में दस से अधिक गांवों की जीवन रेखा अस्थाई पुलिया के भरोसे चल रही है। आपदा के दौरान इन गांव के निकट के बरसाती नालों में बनी पुलिया बह गई थी, जो अभी तक स्थाई रूप से नहीं बनाई गई हैं। ग्रामीणों और छात्रों को जान जोखिम में डालकर बरसात के समय ये नदी-नाले पार करने पड़ रहे हैं। इन नालों पर कई बार हादसे भी हो चुके हैं, बावजूद इसके सोया हुआ तंत्र जागने को तैयार नहीं है।    बता दें कि भटवाड़ी ब्लॉक के स्याबा और सालू गांव के 30 से अधिक नौनिहाल अपनी जान जोखिम में डाल कर एक बरसाती गदेरे पर लगी लकड़ी की कच्ची पुलिया को पार कर सौंरा इंटर कॉलेज आते-जाते हैं। नौगांव ब्लॉक के मदेश और पिंडकी के बीच हनुमान गंगा पर स्थाई पुलिया आपदा के दौरान बह गई थी। ग्रामीणों ने आवागमन के लिए अस्थाई पुलिया बनाई। मोरी ब्लॉक के सटूड़ी गांव के ग्रामीणों ने कुछ दिन पहले ही सुपीन नदी पर अस्थाई पुलिया बनाई। इस पुलिया से ग्रामीण व छात्र जखोल पहुंचते हैं।   घोषणा के बाद भी पिछले पांच सालों से स्थाई पुल का निर्माण नहीं हो सका। मोरी के सांकरी से ओसला गंगाड़ जाने के लिए ग्रामीणों हलारा गदेरा व पूर्ती गाड को पार करना पड़ता है। लेकिन इन दोनों जगह पर 2012 में यहां बनी अस्थाई पुलिया बह गई थी। हलारा गदेरे में 2014 में एक महिला गदेरे के उफान में बह गई थी। 2016 में यहां एक ब्रह्म ब्रिज भी बनाया गया था। वह भी टूट गया गया है। अब हलारा गदेरा व पूर्ति गाड़ में ग्रामीणों ने अस्थाई पुलिया बनाई है। भटवाड़ी ब्लॉक के गजोली व नौगांव के छात्रों को भी इंटर कॉलेज तक पहुंचने के लिए 2012 से कच्ची पुलिया का सहारा लेना पड़ता है।    उत्तराखंड: भारी बारिश से उफान पर आए ये दो नाले, लोगों में दहशत यह भी पढ़ें इस तरह से अगोड़ा गांव के ग्रामीण अपनी छानियां व खेतों तक जाने के लिए असी गंगा को पार करते हैं। 2017 में एक ट्रॉली लगाई गई। लेकिन ट्रॉली के तार ढीले हो चुके हैं। इसी घाटी में विश्व प्रसिद्ध पर्यटक स्थल डोडीताल जाने के लिए बेवरा नदी पार करनी होती हैं। यहां ग्रामीणों ने अस्थाई पुलिया बनाई है। लेकिन बरसात में यह पुलिया बह जाती है। बीते वर्ष पुलिया बहने से डोडीताल में पांच पर्यटक फंसे थे।  वन विभाग ने इन मार्ग की मरम्मत पर दो करोड़ से अधिक खर्च कर दिए हैं। बावजूद इसके अभी तक पुलिया नहीं बन पाई है। मोरी के बेंचा घाटी के लिवाडी, फिताडी, रैक्चा के ग्रामीणों को बरसात में सुपीन नदी तथा मोरी के नुराणु, सेवा, बरी के ग्रामीणों को रूपीन नदी पर बनाई अस्थाई पुलिया से आवागमन करना पड़ रहा है। इसी तरह की स्थिति पुरोला के सांखाल, मटियालोड, थली, नाडा गांव की है। बरसात के दिन इन ग्रामीणों पर भारी पड़ते हैं।    ट्रॉली से गिरकर उफनती टौंस नदी में समार्इ बच्ची, लापता यह भी पढ़ें जिलाधिकारी आशीष चौहान ने बताया कि गजोली में पुलिया बनाने के लिए जिपं को निर्देश दिए गए हैं। सटूड़ी गांव में स्थाई पुलिया स्वीकृत है। वन अधिनियम की स्वीकृति की कार्रवार्इ गतिमान है। ग्रामीणों के पास वैकल्पिक रास्ते भी हैं।

बता दें कि भटवाड़ी ब्लॉक के स्याबा और सालू गांव के 30 से अधिक नौनिहाल अपनी जान जोखिम में डाल कर एक बरसाती गदेरे पर लगी लकड़ी की कच्ची पुलिया को पार कर सौंरा इंटर कॉलेज आते-जाते हैं। नौगांव ब्लॉक के मदेश और पिंडकी के बीच हनुमान गंगा पर स्थाई पुलिया आपदा के दौरान बह गई थी। ग्रामीणों ने आवागमन के लिए अस्थाई पुलिया बनाई। मोरी ब्लॉक के सटूड़ी गांव के ग्रामीणों ने कुछ दिन पहले ही सुपीन नदी पर अस्थाई पुलिया बनाई। इस पुलिया से ग्रामीण व छात्र जखोल पहुंचते हैं। 

घोषणा के बाद भी पिछले पांच सालों से स्थाई पुल का निर्माण नहीं हो सका। मोरी के सांकरी से ओसला गंगाड़ जाने के लिए ग्रामीणों हलारा गदेरा व पूर्ती गाड को पार करना पड़ता है। लेकिन इन दोनों जगह पर 2012 में यहां बनी अस्थाई पुलिया बह गई थी। हलारा गदेरे में 2014 में एक महिला गदेरे के उफान में बह गई थी। 2016 में यहां एक ब्रह्म ब्रिज भी बनाया गया था। वह भी टूट गया गया है। अब हलारा गदेरा व पूर्ति गाड़ में ग्रामीणों ने अस्थाई पुलिया बनाई है। भटवाड़ी ब्लॉक के गजोली व नौगांव के छात्रों को भी इंटर कॉलेज तक पहुंचने के लिए 2012 से कच्ची पुलिया का सहारा लेना पड़ता है। 

इस तरह से अगोड़ा गांव के ग्रामीण अपनी छानियां व खेतों तक जाने के लिए असी गंगा को पार करते हैं। 2017 में एक ट्रॉली लगाई गई। लेकिन ट्रॉली के तार ढीले हो चुके हैं। इसी घाटी में विश्व प्रसिद्ध पर्यटक स्थल डोडीताल जाने के लिए बेवरा नदी पार करनी होती हैं। यहां ग्रामीणों ने अस्थाई पुलिया बनाई है। लेकिन बरसात में यह पुलिया बह जाती है। बीते वर्ष पुलिया बहने से डोडीताल में पांच पर्यटक फंसे थे।

वन विभाग ने इन मार्ग की मरम्मत पर दो करोड़ से अधिक खर्च कर दिए हैं। बावजूद इसके अभी तक पुलिया नहीं बन पाई है। मोरी के बेंचा घाटी के लिवाडी, फिताडी, रैक्चा के ग्रामीणों को बरसात में सुपीन नदी तथा मोरी के नुराणु, सेवा, बरी के ग्रामीणों को रूपीन नदी पर बनाई अस्थाई पुलिया से आवागमन करना पड़ रहा है। इसी तरह की स्थिति पुरोला के सांखाल, मटियालोड, थली, नाडा गांव की है। बरसात के दिन इन ग्रामीणों पर भारी पड़ते हैं। 

जिलाधिकारी आशीष चौहान ने बताया कि गजोली में पुलिया बनाने के लिए जिपं को निर्देश दिए गए हैं। सटूड़ी गांव में स्थाई पुलिया स्वीकृत है। वन अधिनियम की स्वीकृति की कार्रवार्इ गतिमान है। ग्रामीणों के पास वैकल्पिक रास्ते भी हैं।

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