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सोनिया गांधी का ये फैसला बना बीजेपी की राह का रोड़ा…

गोवा और मणिपुर में भाजपा से ज्यादा सीटें पाने के बावजूद सरकार बनाने में विफल रहने वाली कांग्रेस ने कर्नाटक में सरकार बनाने की कोशिश करने के लिए नतीजे आने का तक का इंतजार नहीं किया। यही वजह थी कि जब कांग्रेस और जनता दल (एस) के नेता राज्यपाल से मिलने पहुंचे तो उन्होंने मिलने से मना कर दिया।

सुबह जैसे ही नतीजे आने शुरू हुए, कांग्रेस और भाजपा लगभग बराबर-बराबर सीटें पाते दिखे। लेकिन 11 बजे के आसपास भाजपा की लीड बहुमत के आंकड़े 112 से भी आगे निकल गई। फिर दोपहर एक बजे साफ होने लगा कि भाजपा अपने दम पर सरकार नहीं बना पाएगी। कांग्रेस नेताओं ने यह देखने के लिए आधा घंटे इंतजार किया कि कहीं ट्रेंड बदल तो नहीं रहे। एक बार जब यह साफ हो गया कि कांग्रेस और जद (एस) मिलकर बहुमत के आंकड़े के पार जा रहे हैं तो फिर क्या था। सोनिया गांधी ने एक चौंकाने वाला फैसला लिया। भाजपा का रास्ता रोकने के लिए उन्होंने जद (एस) नेता एचडी देवगौड़ा से फोन पर बात की। कहा कि उनकी पार्टी कुमारस्वामी को बतौर मुख्यमंत्री स्वीकार करती है। इस पर देवगौड़ा ने भी सकारात्मक जवाब दिया।

सवा दो बजे लगी समझौते पर मुहर
 
यहीं से कर्नाटक की राजनीति में एक के बाद एक नाटकीय मोड़ आने शुरू हुए। सोनिया ने यह बात राहुल गांधी से लेकर बंगलूरू पहुंचे गुलाम नबी आजाद और अशोक गहलोत से साझा की। सवा दो बजे कांग्रेस नेताओं ने कुमारस्वामी से बात कर समझौते पर मुहर लगवा ली। पौने तीन बजे कांग्रेस नेता राजभवन जाने के लिए निकल गए। ताकि गोवा और मणिपुर जैसा स्थिति का सामना न करना पड़े। इन दोनों राज्यों में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी थी। लेकिन भाजपा ने रातोंरात दूसरी पार्टियों से गठबंधन कर सरकार बना ली और कांग्रेस को विपक्ष में बैठने को मजबूर कर दिया।

यही वजह थी कि इस बार कांग्रेस की ओर से जोड़तोड़ करने और सरकार बनाने का दावा पेश करने के लिए नतीजे आने का इंतजार ही नहीं किया गया। लेकिन कांग्रेस नेताओं को राजभवन के गेट पर ही रोक दिया गया क्योंकि राज्यपाल वजुभाई बाला का कहना था कि सरकार बनाने का दावा तो चुनाव के नतीजे आने के बाद ही किया जा सकता है। हालांकि कुछ समय बाद इस्तीफा देने पहुंचे मुख्यमंत्री सिद्धारमैया से उन्होंने मुलाकात की। लेकिन जैसे ही यह बात भाजपा नेताओं को पता चली, उन्होंने भी सरकार बनाने का दावा पेश करने का फैसला कर लिया। शाम छह बजे पहले भाजपा नेताओं और फिर कुछ ही समय बाद कांग्रेस और जद (एस) नेताओं से मिलकर राज्यपाल ने दोनों के दावे स्वीकार किए और कानून के जानकारों व संविधान विशेषज्ञों से सलाह कर फैसला करने की बात कही। 

चुनाव से पहले बड़ा दिल दिखाने की सलाह को नहीं दिया था भाव 

चुनाव से पहले जद (एस) से गठबंधन के लिए बड़ा दिल करने की पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की सलाह को भाव न देने वाली कांग्रेस को इसका राजनीतिक मतलब रुझान आने के बाद समझ में आया। कांग्रेस जद (एस) के साथ सीटें साझा करने को तैयार नहीं थी लेकिन मंगलवार को उसे बिना शर्त समर्थन देने का एलान कर दिया।
कांग्रेस मान बैठी थी नहीं पड़ेगी जद (एस) की जरूरत

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी चुनावी भाषणों में जद (एस) को भाजपा की बी टीम बताया और निशाने पर रखा। दरअसल, कांग्रेस शुरू से ही मान बैठी थी कि 2013 की तरह उसे जद (एस) की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। अति आत्मविश्वास से लबरेज कांग्रेस बहुमत के लिए जरूरी संख्या पूरी न होने पर प्लान बी में भी उसे साथ लेकर नहीं चलना चाहती थी। संख्या पूरी करने के लिए उसे विद्रोहियों और निर्दलीयों पर भरोसा था। 

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